ऐड़ी देवता – कुमाऊँ के लोक देवता की कहानी : ऐड़ी देवता उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के लोक देवता हैं। उन्हें वन देवता के रूप में पूजा जाता है। कहते हैं कि ऐड़ी देवता अपने क्षेत्र में रात्रि को ,अपने दल बल के साथ शिकार के लिए निकलते हैं। और रात्रि में बुरी शक्तियों से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में ऐरी देवता के बारे में अनेक कथाएं एवं मान्यताएं प्रचलित हैं। और चंपावत और नैनीताल जिले के बीच मे ब्यानधुरा नामक स्थान पर ,ऐड़ी देवता का प्रसिद्ध मंदिर है।
यह एक अनोखा मंदिर है, जहां लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर धनुष बाण चढ़ावे में चढ़ाते हैं। इसीलिए यह मंदिर को धनुष चढ़ाने वाला मंदिर भी कहते हैं। भगवान शिव के 108 ज्योतिर्लिंगों में से एक मान्यता प्राप्त ज्योतिर्लिंग यहाँ है । इसीलिए इस मंदिर को देवताओं की विधानसभा भी कहते हैं। कहते हैं कि कुमाऊँ में एक राजा ऐड़ी हुवा करते थे। उन्होंने ब्यानधुरा की चोटी पर ,तपस्या करके देवत्व प्राप्त किया ,और कालांतर में ऐरी देवता के रूप में पूजे जाने लगे।
अन्य कथाओं के अनुसार ऐरी देवता ,आखेट प्रिय, अल्हड़ और क्रोधी स्वभाव के देवता हैं, रात को डोली में बैठ कर पहाड़ो, और जंगलों की यात्रा करते हैं। इनके साथ जो दल चलता है,वो बहुत खतरनाक बताया जाता है। ऐड़ी देवता के बारे में एक कुमाउनी लोक कथा में बताया जाता है,कि मानव रुप में इनका नाम त्यूना था।इनके साथ दो कुत्ते होते थे, झपूवा और कठुआ । इन कुत्तों के साथ ऐरी जंगल मे शिकार खेलता था। एक दिन शिकार खेलने में दुर्धटना वश इनके पैर टूट गए। और इनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं ,इसी लिए ऐरी प्रेत योनि में डोली बैठ कर शिकार खेलते हैं।
कुमाऊँ के इतिहास में ऐड़ी देवता
कुमाऊँ का इतिहास किताब के रचयिता एवं उत्तराखंड के प्रमुख इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडे जी ने ऐरी देवता के बारे में कुछ इस प्रकार वर्णन किया है।ऐरी या ऐड़ी कुमाउनी राजपूतों की प्रसिद्ध जाती है। इस जाति में एक वीर बलवान पुरुष पैदा हुआ था। उसे शिकार खेलने का बहुत शौक था। उसकी जब मृत्यु हुई तो वह प्रेत योनि में भटकने लगा। बच्चो और औरतों को सताने लगा, जब जागर लगाई,तो उसने बताया कि वह ऐड़ी है,उसकी हलवा पूरी बकरा आदि चढ़ा कर उसकी पूजा करो। वह सबको छोड़ देगा,सबका भला करेगा।लोकमतों एवं लोककथाओं के अनुसार, एड़ी डोली में बैठ कर बड़े बड़े पहाड़ो व जंगलों में शिकार खेलता है। ऐड़ी की डोली ले जाने वाले को साऊ भाऊ कहते हैं। कहते हैं,जो रात को ऐरी देवता के कुत्तों की आवाज सुन लेता है,वो अवश्य कष्ट पाता है। ऐरी देवता के साथ ये कुत्ते हमेशा रहते हैं।