शंकराचार्य जी की मौजूदगी में बद्रीनाथ धाम में दिव्य अनुष्ठान : उत्तराखंड के पवित्र तीर्थस्थल श्री बद्रीनाथ धाम में 27 मई को एक विशेष धार्मिक आयोजन सम्पन्न हुआ, जिसने पूरे क्षेत्र को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इस अवसर पर श्री जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी 1008 वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज और 1008 दंडीस्वामी श्री शंकर जी महाराज (नानतिन बाबा आश्रम, श्यामखेत, भवाली) सहित कई संतों की उपस्थिति में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु और तीर्थयात्री शामिल हुए।
पूरे बद्रीनाथ धाम में इस दिन धार्मिक उल्लास और भक्ति का वातावरण देखने को मिला। श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रांगण में जब संतजनों ने वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ पूजा प्रारंभ की, तो पूरा क्षेत्र दिव्यता से भर उठा। इस विशेष अनुष्ठान के दौरान मौजूद श्रद्धालुओं ने गहन श्रद्धा और भक्ति के साथ भाग लिया, जिससे वातावरण अत्यंत पावन बन गया।
शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को धर्म, साधना और सेवा के महत्व पर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थलों का दर्शन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण का मार्ग है। उन्होंने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे केवल बाहरी पूजन तक सीमित न रहें, बल्कि जीवन में आचरण की पवित्रता और आत्मचिंतन को भी महत्व दें।
सरकार और मंदिर समिति की व्यवस्था की सराहना
शंकराचार्य जी ने उत्तराखंड सरकार तथा श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा की गई यात्रा व्यवस्थाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सरकार का यह प्रयास न केवल तीर्थयात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है, बल्कि भारतीय सनातन परंपरा के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार के प्रयासों से नई पीढ़ी भी संस्कृति से जुड़ती रहेगी।
श्रद्धालुओं को मिला मानसिक और आध्यात्मिक बल
पूरे कार्यक्रम के दौरान तीर्थयात्रियों ने स्वयं को दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण अनुभव किया। शंकराचार्य जी के सान्निध्य और श्री बद्रीनाथ जी की कृपा से उन्हें गहरी मानसिक शांति प्राप्त हुई। श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को अपने जीवन की अनमोल स्मृति बताते हुए धर्म और भक्ति के पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लिया।
कल्याण की कामना के साथ सम्पन्न हुआ आयोजन
कार्यक्रम का समापन शंकराचार्य जी के मंगल आशीर्वचनों के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी के जीवन में सुख, शांति और अध्यात्मिक प्रगति की कामना की। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान रहा, बल्कि आत्मिक जागरण का भी प्रेरणास्त्रोत सिद्ध हुआ।