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अरे खतड़वा की कहानी सुनी क्या ?

खतड़वा त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला प्रमुख लोकपर्व है. जो पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन को समर्पित है. इसे वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है. कन्या संक्रांति के दिन इस पर्व को कुमाऊं में मनाया गया. …

By Hindi News 24x7 - News Editor
Last Updated: 07 Oct, 2024
अरे खतड़वा की कहानी सुनी क्या ?

खतड़वा त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला प्रमुख लोकपर्व है. जो  पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन को समर्पित है. इसे वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है. कन्या संक्रांति के दिन इस पर्व को कुमाऊं में मनाया गया.  इस दिन पशुओं की सेवा की जाती है और कई नए अनाजों से रात को आग जलाकर हवन किया जाता है. हवन के बाद पहाड़ी ककड़ी को प्रसाद के रूप में आपस में बांटा जाता है. लोकपर्व से जोड़े जाने वाली एक कहानी केवल भ्रांति है. इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।

खतड़वा त्योहार के दिन सबसे पहले उठकर पशुओं के कमरे (गोठ) की साफ-सफाई की जाती है. पशुओं को नहलाया जाता है और उन्हें पौष्टिक हरी घास खिलाई जाती है. बाद में पशुओं के कमरे के लिए एक अग्नि की मसाल तैयार कर इसे पूरे कमरे (गोठ) में घुमाया जाता है. ऐसा करने से पशु को होने वाले रोगों का नाश होता है. शुद्ध और साफ वातावरण का संचार होता है. पहाड़ों में इस रीति के अनुसार घर के बच्चों की ओर से दो-तीन दिन पहले कांस (कूस) के फूल लाए जाते हैं. इन फूलों और हरी खास से मानवाकार आकृति तैयार की जाती है, जिसे बूढ़ा और बूढ़ी कहा जाता है. इन दोनों को घर के आसपास गोबर के ढेर में बनाया जाता है।

रात को होता है पुतला दहन

उस दिन शाम या रात को दिन में बनाए गए पुतलों को गोबर के ढेर से निकालकर घुमाकर छत में फेंक दिया जाता है और जला दिया जाता है. लड़कियों की सहायता से खतड़वा जलाने के लिए एक गोल ढांचा बनाया जाता है. उसमें आग लगाकर कई प्रकार के नए अनाज उसमें डालकर उसकी परिक्रमा की जाती है. उसकी राख से सबके सिर पर तिलक लगाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि खतड़वा और बूढ़ी के एक साथ जलने से पशुओं के सारे रोग भस्म हो जाते हैं. इसके बाद पशु के किल (बांधने का स्थान) से ककड़ी तोड़कर आपस में प्रसाद के रूप में बांटी जाती है।

 

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