कैसे हुई अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत : हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर की महिलाओं के संघर्ष, उपलब्धियों और अधिकारों को पहचानने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए खास माना जाता है। 2025 में इस दिन की थीम ‘Accelerate Action’ यानी ‘तेजी से बदलाव लाएं’ रखी गई है। इसका मतलब है कि अब केवल बातों से नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाकर महिलाओं के हक और सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ने का समय आ गया है।
महिला दिवस की नींव 20वीं सदी की शुरुआत में मजदूर आंदोलनों के दौरान पड़ी। 1908 में न्यूयॉर्क की 15,000 महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर बेहतर वेतन, कम काम के घंटे और अच्छे कामकाजी माहौल की मांग की। इसके बाद 1909 में अमेरिका में पहली बार ‘नेशनल वुमेन्स डे’ मनाया गया। 1910 में जर्मनी की क्लारा जेटकिन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे कई देशों ने अपनाया। इसके बाद 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में पहली बार इस दिन को आधिकारिक रूप से मनाया गया।
1917 में रूस की महिलाओं ने इस दिन हड़ताल की, जिसके बाद 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में तय कर दिया गया।आगे चलकर, संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में इसे आधिकारिक मान्यता दी और तब से यह दिन महिलाओं के अधिकारों और समानता की लड़ाई का प्रतीक बन गया। महिला दिवस सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि उन चुनौतियों पर बात करने का भी मौका है, जिनका सामना महिलाएं आज भी कर रही हैं। इस साल महिला दिवस की थीम ‘Accelerate Action’ हमें याद दिलाती है कि सिर्फ चर्चा से बदलाव नहीं आएगा, बल्कि हमें तेजी से ठोस कदम उठाने होंगे।