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कम बच्चे चाहते हैं सभी धर्मों के लोग, मुस्लिमों में सबसे तेजी से गिरी जन्मदरः NFHS सर्वे

तेजी से गिरी जन्मदरः NHFS के सर्वे के मुताबिक अब सभी धर्मों के लोग पहले की तुलना में कम बच्चे पैदा करना चाहते हैं। हालांकि मुस्लिमों की जन्मदर में गिरावट सबसे तेजी से देखी गई। हालांकि अन्य धर्मों से यह ज्यादा है। भारत में अब सभी धर्मों से जुड़ी महिलाएं …

By Hindi News 24x7 - News Editor
Last Updated: 09 May, 2022
कम बच्चे चाहते हैं सभी धर्मों के लोग, मुस्लिमों में सबसे तेजी से गिरी जन्मदरः NFHS सर्वे

 तेजी से गिरी जन्मदरः NHFS के सर्वे के मुताबिक अब सभी धर्मों के लोग पहले की तुलना में कम बच्चे पैदा करना चाहते हैं। हालांकि मुस्लिमों की जन्मदर में गिरावट सबसे तेजी से देखी गई। हालांकि अन्य धर्मों से यह ज्यादा है। भारत में अब सभी धर्मों से जुड़ी महिलाएं पहले की तुलना में कम बच्चों को जन्म दे रही हैं। देश में फर्टिलिटी रेट लगातार कम हो रहा है। फर्टिलिटी रेट से मतलब एक महिला अपने जीवन में जितने बच्चों को जन्म देती है, उसके औसत से है। 2015-16 में हुए चौथे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और 2019-20 में हुए चौथे NFHS सर्वे के बीच में फर्टिलिटी रेट में काफी अंतर देखा गया है। इसी सप्ताह यह डेटा सरकार ने जारी किया है।

मुस्लिमों में सबसे तेजी से गिरी फर्टिलिटी रेट

आंकड़े देखने पर यह भी पता चलता था कि जिस समुदाय के लोग पहले ज्यादा बच्चे पैदा किया करते थे उनकी फर्टिलिटी रेट में गिरावट भी ज्यादा तेजी से आई है। मुस्लिम समुदाय में सबसे ज्यादा 9.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यह 2.62 से घटकर 2.36 हो गई है। हालांकि दूसरे समुदायों के तुलना में मुस्लिमों में फर्टिलिटी रेट अब भी ज्यादा है।

पांच बार हो चुका है एनएचएफएस सर्वे

1992-93 में यह सर्वे पहली बार हुआ था। तब से अब तक टोटल फर्टिलिटी रेट में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उस वक्त फर्टिलिटी रेट 3.40 हुआ करती थी जो कि अब कम होकर 2.0 रह गई है। यह रेट रिप्लेसमेंट लेवल से भी कम है। रिप्लेसमेंट लेवल वह औसत होता है जिसपर जनसंख्या स्थिर हो जाती है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा बताता है कि मुस्लिमों के अलावा दूसरे बडे़ धार्मिक समुदायों में टोटल फर्टिलिटी रेट रिप्लेसमेंट लेवल से कम हो गया है। वहीं मुस्लिमों में फर्टिलिटी रेट कम होने के बावजूद यह रिप्लेसमेंट लेवल से ऊपर है। अब तक पांच बार एनएफएचएस का सर्वे हो चुका है। इतने सालों में मुस्लिमों का टीआरएफ 46.5 फीसदी और हिंदुओं का 41.2 फीसदी कम हो चुका है।

फर्टिलिटी डेटा यह भी दिखाता है कि बच्चों की संख्या का सीधा संबंध मां की शिक्षा से भी है. मुस्लिमों में 15 से 49 साल की महिलाओं में 31.49 फीसदी महिलाएं अशिक्षित हैं और केवल 44 फीसदी ऐसी हैं जिन्होने स्कूली शिक्षा पूरी की है। वहीं हिंदुओं में यह आंकड़ा 27.6 फीसदी और 53 फीसदी का है।

यह भी बात ध्यान देने योग्य है कि एक ही समुदाय में कई बार अलग-अलग राज्यों में टोटल फर्टिलिटी रेट में अंतर आ जाता है। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें कतो हिंदुओं का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.29 फीसदी है। वहीं तमिलनाडु में इसी धर्म समूह का टीआरएफ 1.75 है। इसी तरह यूपी में मुस्लिमों का टीआरएफ 2.6 है तो तमिलनाडु में 1.93 है जो कि रिप्लेसमेंट रेट से कम है।

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