जब ISRO का सितारा बना जेल का कैदी : मैं हूँ अनन्या सहगल, और आप देख रहे हैं खोजी नारद — जहाँ साज़िशों की परतें खुलती हैं, और हर रहस्य के पीछे छिपा सच बाहर आता है। आज हम आपको ले चलेंगे उस रहस्य की गहराई में, जिसने भारत के सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को गद्दार बना दिया। एक ऐसा वैज्ञानिक जिसने भारत को रॉकेट टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ऐतिहासिक काम किया, लेकिन बदले में मिला अपमान, यातना और साज़िश। हम बात कर रहे हैं डॉ. नम्बी नारायण की — जिनकी ज़िंदगी को 1994 में एक झूठे केस ने तहस-नहस कर दिया।
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नम्बी नारायण उस दौर में ISRO के सबसे तेज़, होशियार और रणनीतिक वैज्ञानिकों में गिने जाते थे। उन्होंने NASA में ट्रेनिंग ली थी और भारत में क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी को विकसित करने में लगे हुए थे — यह वही तकनीक है जो रॉकेट को ऊँचाई और स्थिरता देती है, और जिससे भारत अपने रॉकेट लॉन्च खुद कर सकता था। जब दुनिया ने भारत को नकारा, नम्बी सर ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी। लेकिन जैसे ही वो इस मिशन में सफलता की दहलीज़ पर पहुंचे, अचानक उन पर जासूसी और देशद्रोह का आरोप लगा दिया गया।
1994 में केरल पुलिस और IB ने उन्हें गिरफ्तार किया। आरोप था कि उन्होंने भारत की क्रायोजेनिक तकनीक की जानकारी दो मलयाली महिलाओं के माध्यम से विदेशी एजेंसियों तक पहुंचाई। मीडिया ने बिना किसी सच्चाई की पड़ताल किए उन्हें “गद्दार वैज्ञानिक” का टैग दे दिया। ये वही मीडिया था जो कल तक उन्हें “भारत का विज्ञान योद्धा” कह रही थी। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्हें 19 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दी गईं — शारीरिक पीड़ा, मानसिक अपमान और झूठा कबूलनामा बनाने का दबाव। ये सब उस इंसान के साथ हुआ जो देश की सेवा कर रहा था।
डॉ. नम्बी की ज़िंदगी उलट गई। उनके परिवार को तिरस्कार झेलना पड़ा, समाज ने उन्हें बहिष्कृत किया, और एक वैज्ञानिक की जगह उन्हें अपराधी बना दिया गया। लेकिन जो सच्चाई थी, वो देर से ही सही, सामने आई। 1996 में CBI ने जांच में पाया कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें बेकसूर करार दिया और कहा कि उनके साथ अन्याय हुआ है। लेकिन तब तक जो नुक़सान होना था, हो चुका था। करियर खत्म, नाम पर दाग, और आत्मा पर घाव।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ₹50 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। लेकिन क्या पैसे से उनकी टूटी प्रतिष्ठा, खोया सम्मान और बीते वर्षों की यातना को वापस लाया जा सकता है? असली सवाल ये है कि इस झूठे केस के पीछे कौन था? क्या यह महज़ प्रशासनिक चूक थी या एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश? कई विश्लेषकों का मानना है कि यह एक रणनीतिक हमला था — भारत जिस रफ्तार से क्रायोजेनिक तकनीक में आगे बढ़ रहा था, वह कई विकसित देशों को अखर रहा था। अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत से एक डील वापस ले ली थी, और उसी समय नम्बी सर पर जासूसी का आरोप लगाया गया।
क्या यह संयोग था या सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय चाल? क्या ये साज़िश भारत को तकनीकी रूप से कमजोर बनाए रखने की एक बड़ी योजना का हिस्सा थी? इन सवालों के जवाब आज भी पूरे नहीं मिले हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि नम्बी सर को निशाना बनाया गया — क्योंकि वो सही रास्ते पर थे और देश को आत्मनिर्भर बना रहे थे।
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इस पूरी सच्चाई को सामने लाने का काम किया अभिनेता आर. माधवन ने, जिन्होंने नम्बी सर की ज़िंदगी पर फिल्म बनाई — Rocketry: The Nambi Effect। यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन बन गई। लोगों ने जाना कि एक सच्चा देशभक्त कैसे झूठे आरोपों के नीचे दबा दिया गया था। यह फिल्म एक इमोशनल झटका थी — हमारे सिस्टम पर, हमारे मीडिया पर, और हमारी सोच पर।
आज नम्बी नारायण ज़िंदा मिसाल हैं कि कैसे सत्य को झूठ के जंगल में भी दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने देश से माफ़ी नहीं मांगी — बल्कि देश ने उनसे माफ़ी मांगी। उन्होंने कभी बदले की भावना नहीं रखी, न ही देश के खिलाफ कुछ कहा। वो आज भी भारत की प्रगति के लिए प्रेरणा हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब कोई राष्ट्र अपने ही वैज्ञानिकों को अपमानित करता है, तो वो सिर्फ व्यक्ति को नहीं, बल्कि भविष्य को नुकसान पहुंचाता है।
तो अगली बार जब आप किसी अख़बार की हेडलाइन पढ़ें, किसी टीवी चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ देखें या सोशल मीडिया पर किसी को ट्रोल होते देखें — तो एक पल रुकिए, सोचिए — कहीं आप किसी नम्बी नारायण को तो नहीं गिरा रहे? याद रखिए, देशद्रोह का सबसे बड़ा सबूत देशभक्ति हो सकता है — अगर आप गलत हाथों में पड़ जाएं।
मैं हूँ अनन्या सहगल, और आपने देखा खोजी नारद — जहाँ हम साज़िशों पर पर्दा नहीं डालते, बल्कि उन्हें उधेड़ते हैं, ताकि आपके सामने सच्चाई पूरी ताक़त से खड़ी हो। अगली बार फिर मिलेंगे, एक और रहस्य, एक और खोज, और एक और सवाल के साथ — कहीं साज़िश आपके ही सिस्टम में तो नहीं है?