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जंगलों की आग से वन्यजीव संकट में, संरक्षित क्षेत्र भी चपेट में

जंगलों की आग से वन्यजीव संकट में, संरक्षित क्षेत्र भी चपेट में : गर्मियों के आते ही उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हो जाती हैं। ये आग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि जंगलों में निवास करने वाले वन्यजीवों के लिए भी बड़ा खतरा …

By Hindi News 24x7 - News Editor
Last Updated: 06 May, 2025
जंगलों की आग से वन्यजीव संकट में, संरक्षित क्षेत्र भी चपेट में

जंगलों की आग से वन्यजीव संकट में, संरक्षित क्षेत्र भी चपेट में : गर्मियों के आते ही उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हो जाती हैं। ये आग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि जंगलों में निवास करने वाले वन्यजीवों के लिए भी बड़ा खतरा साबित होती हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है, फिर भी वन्यजीवों की हानि को लेकर कोई ठोस अध्ययन नहीं किया गया है. उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार, इस वर्ष अब तक जंगलों में आग की 180 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन घटनाओं में करीब 209 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। आग की इन घटनाओं ने जंगल की जैव विविधता को भी गहरा आघात पहुंचाया है, जिसका असर आने वाले वर्षों तक दिख सकता है।

जंगलों की आग अब संरक्षित वन क्षेत्रों तक भी पहुंचने लगी है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी नेशनल पार्क जैसे वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों में भी अब तक 12 आग की घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में 15 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र जल चुका है, जिससे वन्यजीवों के आवास और सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ा है. वन विभाग यह मानता है कि आग से वन्यजीवों को नुकसान होता है, लेकिन विभाग के पास इससे संबंधित कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) रंजन कुमार मिश्रा का कहना है कि जंगलों में लगी आग से छोटे से लेकर बड़े जीवों तक सभी प्रभावित होते हैं। कई बार जीवों की मृत्यु हो जाती है या उन्हें अपने सुरक्षित आवास को छोड़ना पड़ता है।

वन विभाग स्थानीय समितियों और लोगों की मदद से जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रहा है। संरक्षित क्षेत्रों में निगरानी बढ़ाई गई है ताकि वन्यजीवों को समय रहते बचाया जा सके। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रयास अभी भी अपर्याप्त हैं.  जंगलों में आग की घटनाओं को केवल पेड़ों की क्षति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक अध्ययन, आंकड़ों का संग्रहण और नीति-निर्माण बेहद जरूरी हो गया है। वन्यजीवों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना अब समय की मांग है।

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